सभी नक्षत्र का महत्व
अश्विनी नक्षत्र

अश्विनी नक्षत्र
अश्विनी नक्षत्र यह नक्षत्र ठीक सिर्फ दिसंबर महीने के पहले ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप घोड़े के मुँह जैसा स्वरूप दिखाई देता है मेष राशि अश्विनी नक्षत्र 0 अंश 0 कला से 13 अंश 20 कला तक होता है
अश्विनी नक्षत्र का स्वभाव:
अश्विनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का स्वभाव स्थूलकाय, सुन्दर, चतुर, बुद्धिमान, लोकप्रिय भाग्यवान, बातूनी, जल्दबाज, भ्रमणप्रिय, कलहप्रिय, अल्प संपत्तिवान, भूसम्पत्ति के लिए चिन्तित, भ्राता से तनावपूर्ण सम्बन्ध |
अश्विनी नक्षत्र व्यवसाय:
अश्विनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक पुलिस , सेना, उद्योग, न्यायालय, जेल, रेलवे में नौकरी, मशीनरी, लौह इस्पात, तांबा व्यवसाय, अध्यापन, लेखन, योग प्रशिक्षण, शल्य चिकित्सक, घुड़सवार या घोड़ों से सम्बन्धित व्यवसाय ।
इस अश्विनी नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
अश्विनी नक्षत्र रोग:
अश्विनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें सिर में चोट, घाव, वातशूल, मूर्छा, मस्तिष्क में रक्त संचय, मिर्गी, आधा सीसी का दर्द, पक्षाघात, मस्तिष्क ज्वर, मस्तिष्कीय रक्तस्त्राव, आत्मविस्मृति, अनिद्रा, मलेरिया, चेचक.
राशीश मंगल
• नक्षत्र अंग - शिर
• नक्षत्र वृक्ष - केला आर्क धतूरा
• नक्षत्र रंग : लाल
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी केतू ।
• नक्षत्र के देवता अश्विनीकुमार
• नक्षत्र मंत्र अश्विनीकुमाराभ्यां नमः
• वर्ण: क्षत्रिय
• वशय:चतुश्पद
• योनि : अश्व
• गण: देव
• नाड़ी: आदि
नक्षत्र साधना उपासना
अश्विनी नक्षत्र के 4 चरण मेष राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी मंगल:
एकादसी व्रत, भानु सप्तमी का व्रत
द्वितीय चरण का स्वामी शुक्:
हरिवंश पुराण श्रवण पढाई तथा पठन गौ-दान गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी बुध :
हरिवंश पुराण श्रवण पठन गौ-दान
चौथे चरण का स्वामी चंद्रमा :
गायत्री जप हवन सुवर्ण दान
Special Tips:
अश्विनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को अश्विनी मघा और मूला इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
भरणी नक्षत्र

भरणी नक्षत्र
भरणी नक्षत्र यह नक्षत्र ठीक सिर्फ दिसंबर महीने के दूसरे पक्ष में में रात 9:00 से 11:०० ठीक शिर पर आकाश बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में त्रिकोण के सामान स्वरूप माना गया है मेष राशि भरणी नक्षत्र 13 अंश 20 कला से 26 अंश 40 कला तक होता है
भरणी नक्षत्र का स्वभाव:
भरणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का स्वभाव चतुर, प्रसन्न, सत्यवक्ता, नीरोग, साहसी, दृढ़ प्रतिज्ञ, सुखी, धनी, रसिक, मनोरंजन के कार्यों ( संगीत, नाटक, खेलकूद आदि) के प्रति रुझान, धूम्रपान व मद्यपान में रुचि, भाग्यवादी, स्वार्थी, कठोर, निर्दयी, कृतघ्न, चटोरा, इन्द्रिय सुख लिप्त ।
भरणी नक्षत्र व्यवसाय:
भरणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का व्यवसाय आमोद-प्रमोद, सिनेमा थियेटर, खेलकूद, संगीत, वाद्ययंत्र, ललित कला, विज्ञापन, प्रदर्शनी, रजत आभूषण, रेशम, ऑटोमोबाइल्स, खाद, उद्योग, रेलवे, पशुपालन, पशु चिकित्सा, चाय एवं कॉफी के बागान, होटल व रेस्तरां, न्यायाधीश, अपराध विशेषज्ञ अधिवक्ता, चर्म उद्योग, खाल-हड्डियां, भवन निर्माण, इंजीनियर, शल्य चिकित्सक, रति एवं मातृ रोग विशेषज्ञ, कृषक, नेत्र रोग विशेषज्ञ, चश्मा व्यवसाय, प्लास्टिक, खेलकूल उपकरण, कसाईखाना आदि ।
इस भरणी नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
भरणी नक्षत्र रोग:
भरणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें सिर या मस्तक पर नेत्रों के निकट चोट, रतिरोग, सूजाक, चर्म रोग, ठंड कम्पन, ज्वर, गर्मी ( सूजाक ) से चेहरा व दृष्टि प्रभावित | .
राशीश मंगल
• नक्षत्र अंग -सिर, एवं नेत्र ज्योति
• नक्षत्र वृक्ष - केला और अम्ब्ला
• नक्षत्र रंग : सफ़ेद
• नक्षत्र तत्व अग्नि
• नक्षत्र गणना - क्रूर
• नक्षत्र स्वामी शुक्र ।
• नक्षत्र के देवता यम
• नक्षत्र मंत्र यमाय नमः
• वर्ण:क्षत्रिय
• वशय:चतुश्पद
• योनि : गज
• गण: मनुष्य
• नाड़ी:मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
भरणी नक्षत्र के 4 चरण मेष राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी रवि
शिव उपासना मृत्युंजय मंत्र जप और ब्राह्मण भोजन
द्वितीय चरण का स्वामी बुध :
गायत्री मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी शुक्र :
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप
चौथे चरण का स्वामी मंगल :
विष्णु भगवान की उपासना
Special Tips:
भरणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को भरणी , पूर्वा फाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
कृतिका नक्षत्र

कृतिका नक्षत्र
यह नक्षत्र ठीक सिर्फ दिसंबर महीने के पहले ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप घोड़े के मुँह जैसा स्वरूप दिखाई देता है मेश राशि कृतिका नक्षत्र प्रथम चरण-मेश राशि 26 अंश 40 कला से 30" वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण- वृषभ राशि 0 अंश से 10 अंश तक,
मेश राशि कृतिका नक्षत्र का स्वभाव:
मेश राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का उत्तम स्वास्थ्य, शक्ति एवं उत्साह, आगे बढ़ने की प्रवृत्ति, नेतृत्वशील, वाक्पटुता, तर्क शक्ति, प्रसिद्ध, न्यायप्रिय, प्रतिस्पर्द्धात्मक भावना, बहुभोजी, अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित, आक्रामक
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र का स्वभाव:
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सामाजिकता, अतिथि सम्मान, दयालु, अच्छे मित्र, ऐशो-आरामपसन्द, जनप्रिय, प्रभावशाली व्यक्तित्व, प्रसन्न, क्रियात्मक मस्तिष्क, कार्यों में सफलता,चतुर, बृद्धिमान, सफल व्यापारी, लोकप्रिय तथा सम्पन्न, शत्रुहन्ता, सट्टा-लाटरी में रुचि ।
मेश राशि कृतिका नक्षत्र व्यवसाय:
मेश राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक सेना, पुलिस, उद्योग, चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, रक्षा विभाग, रसायन उद्योग, आयुध शस्त्र निर्माण, भूमि भवन एवं पैतृक सम्पत्ति से लाभ, उत्खनन, विस्फोटक पदार्थ निर्माण, अग्नि से सम्बन्धित व्यवसाय, माचिस, लौह स्टील व पीतल बर्तन उद्योग, नाई, कुम्हार, पंडिताई ज्योतिष आदि ।
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र व्यवसाय:
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक राज्य सरकार से लाभ, विदेशियों के सम्पर्क से लाभ, उत्तम वस्त्र एवं रत्नादि से लाभ, पुराने ऋण की पुनः प्राप्ति, संगीत, नृत्य, ड्रामा, कविता, कला - चित्रकला, मानचित्रकारिता, मृर्तिकारी, रेशम, फोटोग्राफी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, सजावट, उद्योग, चिकित्सा विभाग, इन्जीनियर, कर विभाग, ऊन व बालों का निर्यात, रति रोग विशेषज्ञ ।
इस कृत्तिका नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
मेश राशि कृतिका नक्षत्र रोग:
मेश राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें तीव्र ज्वर, मलेरिया, प्लेग, चेचक, खसरा, मस्तिष्क ज्वर, दुर्घटना,घाव, चोट, अग्नि दुर्घटना, फाइलेरिया, विस्फोट से दुर्घटना |
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र रोग:
वृषभ राशि कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें – मुंहासे, चोट, रक्त- नेत्र, नेत्र सूजन (आंखें आना), गले के रोग, टॉन्सिल बढ़ जाना, गर्दन में सूजन व अकड़न, नाक में पॉलीपस, फोड़े, फुन्सी, चक्कर आना, घुटने में ट्यूमर
मेश राशि कृतिका राशीश मंगल
वृषभ राशि कृतिका राशीश शुक्र
नक्षत्र अंग सिर, मस्तिष्क, नेत्र एवं नेत्र ज्योति चेहरा, गर्दन, टॉन्सिल, निचला जबड़ा, सिर के पीछे का भाग।।
नक्षत्र वृक्ष - गूलर
नक्षत्र रंग : लाल
नक्षत्र तत्व - अग्नि
नक्षत्र गणना - क्रूर
नक्षत्र स्वामी - सूर्य
नक्षत्र के देवता - अग्नि
नक्षत्र मंत्र - ॐ कृतिकाभ्यो नमः
कृतिका नक्षत्र मेष राशि
• वर्ण:क्षत्रिय
• वशय:चतुश्पद
• योनि :मेष
• गण: राक्षस
• नाड़ी:अंत्य
कृतिका नक्षत्र वृषभ राशि
• वर्ण:वैश्य
• वशय:चतुश्पद
• योनि :मेष
• गण: राक्षस
• नाड़ी:अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
कृतिका नक्षत्र प्रथम चरण-मेश राशि द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण- वृषभ राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी गुरु:
दुर्गा उपासना (मेष राशि कृतिका नक्षत्र)
द्वितीय चरण का स्वामी शनि:
शिव उपासना
तृतीय चरण का स्वामी शनि:
दशांश हवन भूमिदान
चौथे चरण का स्वामी गुरु:
गायत्री मंत्र जप हवन और गौ-दान
Special Tips:
कृतिका नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को कृत्तिका - उत्तराफाल्गुनी - उत्तराषाढ़ा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
रोहिणी नक्षत्र

रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र जनवरी महीने में शिर पर रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप गाड़ा (शकट) जैसा स्वरूप दिखाई देता है वृषभ राशि रोहिणी नक्षत्र - 10 अंश से 13 अंश 20 कला तक होता है
रोहिणी नक्षत्र का स्वभाव:
रोहिणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का मृदु स्वभाव, प्रसन्नचित्त, प्रकृति प्रेमी, सहानुभूतिप्रद व्यवहार, • ललित कला तथा साहित्य में रुचि, सत्यवादी, मिष्ठभाषी, स्थिर मस्तिष्क, सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व, मातृप्रेमी, कृतज्ञ, परोपकारी, कविहृदय, संगीत, नाट्यकला, ईमानदार परन्तु विषय वासनारत एवं परस्त्रीगामी ।
रोहिणी नक्षत्र व्यवसाय:
रोहिणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक होटल, रेस्तरां, सुसज्जित आवास व्यवसाय, फल, पेट्रोल, ऑटोमोबाइल, तेल, दूध, डेयरी, आइसक्रीम, कांच, प्लास्टिक, साबुन, सेन्ट, चन्दन, रंग-रोगन, एसिड, तरल पदार्थ, जलयान, नौ-सेना, सूत, शक्कर, गन्ना, दवाइयां, जलीय पदार्थ आदि से सम्बन्धित व्यवसाय, विवाह ब्यूरो, पशु, कृषि, चर्म उद्योग, रेडीमेड गारमेन्ट्स, प्रॉपर्टी डीलर, ज्योतिष, पंडिताई, नृत्य संगीत, ललित कलासे सम्बन्धित कार्य, न्यायाधीश, वकील।
इस रोहिणी नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
रोहिणी नक्षत्र रोग:
रोहिणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गले में सूजन, घेंघा, शीत ज्वर, ठंड, कफ, ज्वर, पैरों में दर्द, मुंह, जीभ, टॉन्सिल, तालू, सिरदर्द, छाती में दर्द (स्त्रियों के लिए), अनियमित मासिक धर्म, सूजन, कुक्षिशूल, रक्तस्त्राव
राशीश शुक्र
नक्षत्र अंग चेहरा, गर्दन की अस्थियां टॉन्सिल, तालू गर्दन
• नक्षत्र वृक्ष - जामुन
• नक्षत्र रंग : लाइट यलो
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी - चन्द्र
• नक्षत्र के देवता - प्रजापति
• नक्षत्र मंत्र - ॐ रोहिण्यै नमः
• वर्ण:वैश्य
• वशय: चतुश्पद
• योनि : सर्प
• गण: मनुष्य
• नाड़ी:अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
रोहिणी नक्षत्र के 4 चरण वृषभ राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : मंगल
ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप
द्वितीय चरण का स्वामी : शुक्र
मृन्तुन्जय मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी : विष्णु
विष्णु उपासना
चौथे चरण का स्वामी सूर्य :
सूर्य मंत्र माधव मास में गंगा यमुना स्नान
Special Tips:
रोहिणी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को रोहिणी - हस्त - श्रवण इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
मृगशिर नक्षत्र

मृगशिर नक्षत्र
मृगशिर नक्षत्र जनवरी-फरवरी महीने में ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में मृग के आँखों जैसा स्वरूप दिखाई देता है वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र प्रथम व द्वितीय चरण-वृषभ राशि 23 अंश 20 कला से 30 अंश तक, मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र – तृतीय व चतुर्थ चरण-मिथुन राशि 0 अंश से 6 अंश 40 कला तक,
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र का स्वभाव:
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सचेत, हाजिरजवाब, शक्तिशाली, कार्य कुशल परन्तु कटुभाषी, स्वार्थी, झगड़ालू । कान के पीछे साही, आकर्षक, वाक्पटु,
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र स्वभाव:
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का फुर्तीला, वाक्पटु, हाजिर जवाब, शौकीन, व्यवहार कुशल, व्यापारिक बुद्धि युक्त, तीव्र स्मरण शक्ति का धनी, नेतृत्वशील, मेहनती, धनी परन्तु स्वार्थी, डरपोक व कामी ।
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र व्यवसाय:
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक- सम्बन्धित व्यवसाय, आयकर एवं विक्रय कर विभाग भूमि भवन, वाद्ययंत्र एवं संगीत, प्रदर्शनी, दर्जी का कार्य, खाद, चांदी, प्लेटिनम, ऑटोमोबाइल, खालें व हड्डियां, तम्बाकू, मिठाई से सम्बन्धित व्यवसाय, पशु चिकित्सक, विभाग, गाड़ी, रिक्शा व टैक्सी ड्राइवर, फल, मूंगा, वेसलीन, बर्फ, टेल्कम पाउडर, चन्दन पाउडर, तेल, मंजन, ब्रश आदि का क्रय-विक्रय, चलचित्र उद्योग, फोटोग्राफी, ध्वनि तकनीशियन, वस्त्र, विवाह मण्डप हीरे,।
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र व्यवसाय:.
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक मशीनरी औजार विद्युत उपकरण, शल्य चिकित्सा के यंत्र, टेलीफोन, तार, पोस्टल विभाग, शल्य चिकित्सक, सैनिक, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री, भवन निर्माण ठेकेदार, रेडियो, टेपरिकार्ड, केल्क्यूलेटर, कम्प्यूटर आदि के विक्रेता, विक्रय प्रतिनिधि, दलाल, पत्रकार, प्रकाशन, रेडीमेड गारमेन्ट्स, फलफूल विक्रेता, अनुसंधान, जासूसी, ऑडिटर, लेखाकार, शिक्षक।
इस मृगशीर्ष नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र रोग:
वृषभ राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें मुंहासे, चेहरे पर चोट, गले में सूजन, दर्द, गलफड़,
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र रोग:
मिथुन राशि मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें रक्त दोष, खुजली, साइटिका, भुजाओं में घाव या फ्रेक्चर, कन्धों में में दर्द, गुप्तांगों में रोग, हृदय की बाहरी झिल्ली में सूजन।
वृषभ राशि मृगशिर राशीश शुक्र
मिथुन राशि मृगशिर राशीश बुध
• नक्षत्र अंग गला, भुजा, कंधे, कान, स्वर तंत्र, थाइमस ग्रन्थि, ऊपरी पसलियां चेहरा, ठोड़ी, गाल, टॉन्सिल, तालू
• नक्षत्र वृक्ष खैर है ।
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र रंग - केसरी
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी मंगल
• नक्षत्र के देवता - सोम
• नक्षत्र मंत्र - ॐ मृगशीर्षाय नम:
मृगशीर्ष नक्षत्र वृषभ राशि
• वर्ण: वैश्य
• वशय:चतुश्पद
• योनि :सर्प
• गण: देव
• नाड़ी:मध्य
मृगशीर्ष नक्षत्र मिथुन राशि
• वर्ण: सूद्र
• वशय:मानव
• योनि :सर्प
• गण: देव
• नाड़ी:मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
मृगशिर नक्षत्र प्रथम व द्वितीय चरण-वृषभ राशि तृतीय व चतुर्थ चरण-मिथुन राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : रवि
गायत्री मंत्र जप और दुर्गा देवीपूजा
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप महामृत्युंजय जप
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र जप महामृत्युंजय जप
Special Tips:
मृगशिर नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को मृगशिरा - चित्रा धनिष्ठा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
आर्द्रा नक्षत्र

आर्द्रा नक्षत्र
आर्द्रा नक्षत्र फरवरी महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप मणि स्वरूप दिखाई देता है मिथुन राशि आर्द्रा नक्षत्र 6 अंश 40 कला स 20 अंश तक,
आर्द्रा नक्षत्र का स्वभाव:
आर्द्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का साहित्य में रुचि, कृतघ्न, असत्यवादी, चोर, दुष्ट, पापी,बदमाश, मद्यपानप्रिय, निन्दनीय ।
आर्द्रा नक्षत्र व्यवसाय:
आर्द्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक । व्यापार, पुस्तक विक्रेता, डाक-तार विभाग, यातायात, लेखन, प्रकाशन एवं विज्ञापन, अनुसंधानकर्ता, आविष्कर्ता, दवा विक्रेता, भौतिकी एवं सांख्यिकी विभाग, भविष्यवक्ता, हस्तरेखा, हस्तलेख एवं हस्ताक्षर विशेषज्ञ, कारीगर, पुलिस या सेना में नौकरी, तांत्रिक, ओझा, जादूगर |
इस आद्रा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
आर्द्रा नक्षत्र रोग:
आर्द्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गले में खराबी, गलफेड़े, अस्थमा (दमा), सूखी खांसी, गलघोटू, श्वास के रोग, कान के रोग
राशीश बुध
• नक्षत्र अंग - नक्षत्र अंग गला, भुजाएं, कन्धे, कान ।
• नक्षत्र वृक्ष - आम, बेल
• नक्षत्र रंग : लाइट ग्रीन
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र गणना - तीक्ष्ण
• नक्षत्र स्वामी - राहू
• नक्षत्र के देवता - रूद्र
• नक्षत्र मंत्र - आर्द्रायै नमः
• वर्ण:सूद्र
• वशय:मानव
• योनि :श्वान
• गण: मनुष्य
• नाड़ी:आदि
नक्षत्र साधना उपासना
आर्द्रा नक्षत्र के 4 चरण मिथुन राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
मंत्र जप और दान
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
गायत्री मंत्र जप महामंत्रुंजय जप
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप दान और गौ-दान
Special Tips:
आर्द्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को आर्द्रा स्वाति – शतभिषा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
पुनर्वसु नक्षत्र

पुनर्वसु नक्षत्र
पुनर्वसु नक्षत्र फरवरी के आखिर में और मार्च के शुरू में आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 4 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में घर जैसा स्वरूप दिखाई देता है मिथुन राशि, पुनर्वसु नक्षत्र –प्रथम द्वितीय व तृतीय चरण– मिथुन राशि, 20 अंश से 30 अंश तक होता है कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र –चतुर्थ चरण–कर्क राशि 0 अंश से 3 अंश 20 कला होता है
मिथुन राशि, पुनर्वसु नक्षत्र का स्वभाव:
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का बुद्धिमान, उत्तम स्मरण शक्ति, उचित निर्णय क्षमता, सदाचारी, सत्यभाषी, दानी, आकर्षक, धनी, संतोषी, लोकप्रिय मित्रप्रिय, अन्तःज्ञान युक्त, आलसी ।
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र का स्वभाव:
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का उच्च कल्पना शक्ति, ईमानदार, सत्यमार्गी, वफादार, विश्वसनीय, क्षमाशील, उच्च तर्क तथा निर्णय शक्ति, सहानुभूतिप्रद, धनी,
मिथुन राशि, पुनर्वसु नक्षत्र व्यवसाय
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक । पत्रकार, सम्पादक, प्रकाशक, निरीक्षक, ऑडीटर, कहानी लेखक, साहित्य के अनुवादक, कवि, लेखाकार, न्यायाधीश, इन्जीनियर, प्रवक्ता, सलाहकार, शिक्षक, सचिव, पोस्टमैन, दन्त विषेषज्ञ, उद्घोषक, राजदूत, ऊनी वस्त्र विक्रेता, दुभाषिया, ग्राम प्रधान
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र व्यवसाय
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक । चिकित्सक, पुरोहित, पादरी, राजनयिक मौलवी, अर्थशास्त्री, वकील, न्यायाधीश, व्याख्याता, प्राचार्य, व्यापारी, बैंक कर्मचारी, नाविक, यात्रा - व्यवसायी, नर्स, जलप्रदाय विभाग, तरल पदार्थ से सम्बन्धित व्यवसाय | मिथुन राशि, पुनर्वसु नक्षत्र रोग: नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें निमोनिया, प्लूरिसी, कान में सूजन व दर्द, फेफड़ों में कष्ट, घेंघा, क्षयरोग, रक्त विकार, कमर दर्द, सिरदर्द, ज्वर, ब्रोंकाइटिस, हृदय की बाहरी झिल्ली में सूजन।
इस पुनर्वसु नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र रोग:
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें क्षय रोग, निमोनिया, कफ-कास, रक्तविकार, बेरी-बेरी, जलशोथ, आमाशय में सूजन, अनियमित भूख, श्वासनली में सूजन, पीलिया।
मिथुन राशि, पुनर्वसु नक्षत्र राशीश बुध,
कर्क राशि पुनर्वसु नक्षत्र राशीश चन्द्र
• नक्षत्र अंग – कान, गला, कंधा, फेफड़े। फेफड़े, श्वसनतंत्र, छाती, आमाशय, भोजन नली, अग्नाशय
• नक्षत्र वृक्ष बांस है ।
• नक्षत्र रंग - यलो
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र गणना - चर
• नक्षत्र स्वामी गुरु
• नक्षत्र के देवता - अदिति
• नक्षत्र मंत्र - ॐ पुनर्वसुभ्यां नमः
पुर्नवसु मिथुन राशि
• वर्ण: सूद्र
• वशय: मानव
• योनि :मार्जार
• गण: देव
• नाड़ी: आदि
पुर्नवसु कर्क राशि
• वर्ण: विप्र
• वशय: जलचर
• योनि :मार्जार
• गण: देव
• नाड़ी: आदि
नक्षत्र साधना उपासना
पुनर्वसु नक्षत्र –प्रथम द्वितीय व तृतीय चरण– मिथुन राशि चतुर्थ चरण–कर्क राशि में आता है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : मंगल
शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा दान धर्म गायत्री मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप , महामृत्युंजय जप और विष्णु पूजा
तृतीय चरण का स्वामी : बुध
दुर्गा सप्तसती एवं भगवान शिव की पूजा
चौथे चरण का स्वामी :चंद्र
रविवार और सप्तमी का उपवास
Special Tips:
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुनर्वसु विशाखा – पूर्वाभाद्रपद - इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
पुष्य नक्षत्र

पुष्य नक्षत्र
पुष्य नक्षत्र मार्च महीने में ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप बाण जैसा स्वरूप दिखाई देता है कर्क राशि पुष्य नक्षत्र - 3 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला तक होता है
पुष्य नक्षत्र का स्वभाव:
पुष्य नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक जनप्रिय, नियमपालक, व्यवस्थाप्रिय, धनी, चतुर। सत्वगुणी परोपकारी ईश्वरभक्त नीतिमान सर्वसुखि उच्चविचार रखने वाला और पिता को प्रिय मानाने वाला होता है
पुष्य नक्षत्र व्यवसाय:
पुष्य नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक उत्खनन, तेल, पेट्रोल, कोयला, पेट्रोल पम्प, वन विभाग, कृषि, कुआं, नहर, खाई, तालाब, सुरंग की खुदाई एवं निर्माण, शमशान या कब्रिस्तान में रात्रि में चौकीदारी, रात्रि के अन्य कार्य, जेलर व न्यायाधीश, भूमिगत कार्य एवं जलीय पदार्थों से सम्बन्धित व्यवसाय |
इस पुष्य नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
पुष्य नक्षत्र रोग:
पुष्य नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें क्षय, कैन्सर, पीलिया, पायरिया, गजचर्म (एग्जीमा), स्कर्वी, आमाशय में छाले, श्वासनलिका में घाव, पित्ताशय में पथरी
राशीश चन्द्र
• नक्षत्र अंग फेफड़े, आमाशय, पसलियां
• नक्षत्र वृक्ष पीपल है ।
• नक्षत्र रंग - काला
• नक्षत्र तत्व -अग्नि
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी शनि
• नक्षत्र के देवता - बृहस्पति
• नक्षत्र मंत्र = ॐ पुष्याय नमः
• वर्ण: विप्र
• वशय: जलचर
• योनि :मेष
• गण: देव
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
पुष्य नक्षत्र के 4 चरण कर्क राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : सूर्य
गायत्री मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी :शुक्र
गायत्री मंत्र जप और गौ-दान
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
महामृन्तुन्जय जप
Special Tips:
पुष्य नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुष्य अनुराधा उत्तराभाद्रपद इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए |
आश्लेषा नक्षत्र

आश्लेषा नक्षत्र
आश्लेषा नक्षत्र मार्च महीने के आखिर में ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप चक्र जैसा स्वरूप दिखाई देता है कर्क राशि आश्लेषा नक्षत्र - 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक होता है
आश्लेषा नक्षत्र का स्वभाव:
आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का हाजिर जवाब, उत्तम वक्ता एवं लेखक, विनोदी, अन्य भाषाओं का ज्ञाता, कला, संगीत व साहित्य में रुचि, यात्राप्रिय, अविश्वासी, पापी, कृतघ्न, आलसी, धोखेबाज, कुसंगत, स्वार्थी ।
आश्लेषा नक्षत्र व्यवसाय:
आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक व्यापारी, दलाल, विक्रय प्रतिनिधि, कलाकार, संगीतकार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, पत्रकार, लेखक, स्याही व रंग के निर्माता, टाइपिस्ट, लेखाकार, ऑडिटर, दुभाषिया, राजदूत, यात्रा दलाल, गाइड, परिचारिका, नर्स, दाई, ज्योतिषी, गणितज्ञ, जलदाय विभाग, वस्त्र निर्माण इंजीनियर, ठेकेदार, सूत, कागज, पेन, स्टेशनरी, स्याही, चूना का व्यापारी ।
इस आश्लेषा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
आश्लेषा नक्षत्र रोग:
आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें –वातरोग, श्वास विकार, जलशोथ, अपच, पीलिया, घबराहट, उन्माद,
राशीश चन्द्र,
• नक्षत्र अंग – फेफड़े, आमाशय, भोजन नली, पित्ताशय, अग्नाशय, यकृत । स्नायु
• नक्षत्र वृक्ष नाग केसर और चंदन है ।
• नक्षत्र रंग : हरा
• नक्षत्र तत्व तीक्ष्ण
• नक्षत्र गणना - जल
• नक्षत्र स्वामी बुध
• नक्षत्र के देवता- सर्प
• नक्षत्र मंत्र - ॐ आश्लेषायै नमः
• वर्ण : विप्र
• वशय : जलचर
• योनि : मार्जार
• गण : राक्षस
• नाड़ी : अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
आश्लेषा नक्षत्र के 4 चरण कर्क राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
पप्रथम चरण का स्वामी : गुरु
सूर्य मंत्र का जप
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
गयत्री मंत्र का जप
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
गयत्री मंत्र का जप
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
विष्णु पूजन एवं विष्णु उपासना
Special Tips:
आश्लेषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को आश्लेषा ज्येष्ठा - रेवती इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
मघा नक्षत्र

मघा नक्षत्र
मघा नक्षत्र अप्रैल महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप घर जैसा स्वरूप दिखाई देता है मघा नक्षत्र सिंह राशि–0 अंश से 13 अंश 20 कला, राशीश तक होता है
मघा नक्षत्र का स्वभाव:
मघा नक्षत्र का स्वभाव: मघा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का प्रभावशाली व्यक्तित्व, उत्साही, उत्तरदायी, अधिकारपूर्ण, शक्तिशाली, उत्तम खिलाड़ी, परोपकारी, विश्वसनीय, निर्भीक, महत्वाकांक्षी, धनी, अग्रजभक्त परन्तु मुंहफट, जल्दबाज, झगड़ालू, आत्मरक्षक, क्रोधी, घमण्डी, निर्लज्ज, कामुक ।
मघा नक्षत्र व्यवसाय:
मघा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक उद्योगों का ठेकेदार, रासायनिक दवा उत्पादक, अपराध विशेषज्ञ, रक्षासेवा, शल्य चिकित्सक, चिकित्सा विभाग, सस्ते व नकली ( इमिटेशन ) गहनों के निर्माता, विद्युत पॉलिश, आयुध शस्त्र निर्माण |
इस मघा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
मघा नक्षत्र रोग:
मघा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें — हृदयाघात, पीठ, दर्द, मेरुरज्जु की झिल्ली में सूजन, हैजा, दिल धड़कना, मूर्च्छा, किडनी में पथरी, त्रिदोष, मानसिक रोग
राशीश सूर्य
• नक्षत्र अंग – हृदय, पीठ मेरुरज्जु, प्लीहा, महाधमनी ।
• नक्षत्र वृक्ष बड़ है ।
• नक्षत्र तत्व - अग्नि
• नक्षत्र रंग - गुलाबी
• नक्षत्र गणना - कुर
• नक्षत्र स्वामी केतू
• नक्षत्र के देवता - पितृ
• नक्षत्र मंत्र - ॐ मघायै नम
• वर्ण: क्षत्रिय
• वशय:वनचर
• योनि : मूषक
• गण: राक्षस
• नाड़ी: अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
मघा नक्षत्र के 4 चरण सिंह राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र जप हरिवंश पुराण पठन
द्वितीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी : बुध
गौ-दान तिल दान
चौथे चरण का स्वामी : चंद्र
गायत्री मंत्र जप और भूमि दान
Special Tips:
मघा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को अश्विनी मघा और मूला इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र अप्रैल महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 2 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप चारपाई जैसा दिखाई देता है सिंह राशि पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र — 13 अंश 20 कला से 26 अंश 40 कला तक होता है
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र का स्वभाव:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सत्यभाषी, ईमानदार, सचेत, मिष्ठभाषी, संगीत, नृत्य, नाट्यकला, चित्रकारी, काव्यकला, ललित कला में रुचि, आकर्षक व्यक्तित्व, दयालु, ऐशो-आराम व उत्तम वस्त्रादि प्रिय, रत्नों का शौकीन ।
इस पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र व्यवसाय:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक राजकीय नौकरी, यातायात, रेडियो, संगीत, सिनेमा, थियेटर, होटल, रेस्तरां, कैन्टीन आदि से सम्बन्धित व्यवसाय, सूत, शहद, नमक, ऑटोमोबाइल्स का व्यापार, संग्रहालय, एन्टीक्स ( पुरानी कलात्मक वस्तुओं) का व्यापार, खेलकूद, पशुपालन, पशु चिकित्सा, खाल, हड्डी व चमड़े का व्यापार, रतिरोग विशेषज्ञ, शिक्षक, शिक्षाविद, चश्मे के कांच व सिगरेट के निर्माता, जेल व कन्या विद्यालय में नौकरी, राजस्व विभाग, स्त्री रोग विशेषक्ष एवं शल्य चिकित्सक।
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र रोग:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें – सन्तान हानि, गर्भपात, प्यार में धोखा खाने अथवा अन्य हानि से हृदयाघात, हृदय रोग, हृदय में सूजन, वाल्व में खराबी, मेरुदण्ड में बल पड़ना, रक्ताल्पता, रक्तचाप, नाड़ी दोष, टांगों में दर्द, टखने में सूजन।
राशीश सूर्य
• नक्षत्र अंग – हृदय, मेरुरज्जु ।
• नक्षत्र वृक्ष ढाक है ।
• नक्षत्र तत्व - अग्नि
• नक्षत्र रंग - सफ़ेद
• नक्षत्र गणना - मिश्रगुणी
• नक्षत्र स्वामी शुक्र ।
• नक्षत्र के देवता - भृगु
• नक्षत्र मंत्र - ॐ पूर्वाफाल्गुनीभ्यां नमः
• वर्ण: क्षत्रिय
• वशय: वनचर
• योनि : मूषक
• गण: मनुष्य
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के 4 चरण सिंह राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : सूर्य
गायत्री मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र जप और उपासना
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप , हवन और गौ-दान
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र जप और जल दान
Special Tips:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को भरणी - पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढ़ा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए |
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र

उत्तरा फाल्गुनी
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र अप्रैल के आखिर में और मई की शुरुवात में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 2 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप शय्या जैसा स्वरूप दिखाई देता है सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र - प्रथम चरण सिंह राशि - 26 अंश 40 कला से 30 अंश तक होता है कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र - द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण-कन्या राशि ० अंश से 10 अंश तक होता है
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का स्वभाव:
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का महत्वाकांक्षी स्वावलम्बी, अधिकारपूर्ण, उत्साही, शक्तिशाली, दयालु, आशावादी, संतोषी, प्रसन्न, विद्वान, विनम्र, धनी, जनप्रिय, महान परन्तु स्वप्रशंसक, अभिमानी, ईर्ष्यालु तथा दिखावा करने वाला, अड़ियल
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का स्वभाव:
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का उत्तम तर्क शक्ति, बुद्धिमान, चतुर, उद्यमी, विद्यावसनी, व्यापारिक बुद्धि, गणित, ज्योतिष, इन्जीनियरिंग, लेखापालन, स्वास्थ्य-इन्जीनियरिंग, राजनयिक, आलोचक।
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र व्यवसाय:
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक राज्यसेवा, चिकित्सा, रक्षा, नौसेना, जलयान उद्योग, व्यापार, शेयर व्यापार, हृदय रोग एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, व्यापारी
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र व्यवसाय:
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक मुद्रण, पत्रकार, प्रकाशन, जन सम्पर्क संदेशवाहन, कम्पनी प्रबन्धन, खगोलशास्त्री, ज्योतिषी, हस्तलेख विशेषज्ञ, टेलीफोन व ध्वनि यंत्रों के निर्माता, उत्खनन कार्य, ठेकेदार, दलाल, हृदय रोग व नेत्र रोग विशेषज्ञ, अस्पताल में नौकरी, रासायनिक उद्योग, लेखक, पर्यटन व डाक तार विभाग, वैद्य, दवा विक्रेता, वाद्य यंत्रों से सम्बन्धित व्यवसाय
इस उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रोग:
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें पीठ व सिर में दर्द, वात-विकार, प्लेग, खसरा, रक्तचाप, मियादी बुखार, मूर्च्छा, मानसिक रोग ।
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रोग:
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें आन्त्रशोथ, आंतों में रुकावट, आमाशय के रोग, गले व गर्दन में सूजन व दर्द, यकृत विकार, पैत्तिक ज्वर
सिंह राशि उत्तरा फाल्गुनी राशीश सूर्य
कन्या राशि उत्तरा फाल्गुनी राशीश बुध
• नक्षत्र अंग – मेरुरज्जु । आंतें, यकृत
• नक्षत्र वृक्ष - बड़ और पाकड़ है ।
• नक्षत्र रंग - लाल
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी - सूर्य
• नक्षत्र के देवता - अर्यमा
• नक्षत्र मंत्र - ॐ उतरा फाल्गुनीभ्यां नमः
उतराफाल्गुनी कन्या राशि
•वर्ण: वैश्य
•वशय:मानव
•योनि : गौ
•गण: मनुष्य
•नाड़ी:आदि
उतराफाल्गुनी सिंह राशि
•वर्ण: क्षत्रिय
•वशय:मानव
•योनि : वनचर
•गण: मनुष्य
•नाड़ी:आदि
नक्षत्र साधना उपासना
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र - प्रथम चरण सिंह राशि - द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण-कन्या राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
गौ-दान रविवार और सप्तमी का उपवास
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
गौ-दान और गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
गौ-दान वैशाख-कार्तिक-माह महीने में प्रातः स्नान
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
विष्णु उपासना
Special Tips:
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को कृत्तिका - उत्तराफाल्गुनी - उत्तराषाढ़ा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
हस्त नक्षत्र

हस्त नक्षत्र
हस्त नक्षत्र मई महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप हाथ के पंजो जैसा स्वरूप दिखाई देता है कन्या राशि हस्त नक्षत्र 10 अंश से 23 अंश 20 कला तक होता है
हस्त नक्षत्र का स्वभाव:
हस्त नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का उत्साही, उद्यमी, वेदज्ञ परन्तु लापरवाह, अभिमानी, झूठा, मद्यप्रिय, वाचाल, पाखण्डी, झगड़ालू, ढीठ, निर्लज्ज, चोर, डाकू। मन्दाग्नि, अफारा,
हस्त नक्षत्र व्यवसाय:
हस्त नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक –व्यापारी, विक्रय कार्य, डाक-तार विभाग, संदेशवाहन, जलयान, • सूती वस्त्र व सूत उद्योग, पुल, बांध, नहर व सुरंग निर्माता, स्याही व रंग निर्माता, कलाकार, चित्रकार, राजनयिक, राजदूत, वकील, आयातक-निर्यातक ।
इस हस्त नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
हस्त नक्षत्र रोग:
हस्त नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें — गैस बनना, पेट दर्द, आंतों में रुकावट व सूजन, एन्जाइम्स हैजा, आन्त्र ज्वर, पेचिश, श्वास रोग, आंतों में कीड़े, स्नायु शूल, उन्मा
राशीश बुध
• नक्षत्र अंग – आंतें, स्त्रावी ग्रन्थियां,
• नक्षत्र वृक्ष रीठा है ।
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र रंग - लाल
• नक्षत्र गणना - सत्वगुणी
• नक्षत्र स्वामी - चन्द्र
• नक्षत्र के देवता - सूर्य
• नक्षत्र मंत्र - ॐ हस्ताय नमः
• वर्ण: वैश्य
• वशय:मानव
• योनि : महिष
• गण: देव
• नाड़ी: आदि
नक्षत्र साधना उपासना
हस्त नक्षत्र के 4 चरण कन्या राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र और विधि पूर्वक हवन
द्वितीय चरण का स्वामी: शुक्र
शिव पूजा या शिव मंत्र का जप
तृतीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र या तो जल दान
चौथे चरण का स्वामी : चंद्र
गायत्री मंत्र या सूर्य उपासना
Special Tips:
हस्त नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को रोहिणी - हस्त - श्रवण इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
चित्रा नक्षत्र

चित्रा नक्षत्र
कन्या राशि चित्रा नक्षत्र प्रथम व द्वितीय चरण - कन्या राशि, 23 अंश 20 कला से 30 अंश तक होता है चित्रा - तृतीय व चतुर्थ चरण तुला राशि, 0 अंश से 6 अंश 40 कला तक होता है
कन्या राशि चित्रा नक्षत्र का स्वभाव:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सुन्दर, परिश्रमी, दूरदर्शी, उत्साही, वाक्पटु, निडर, साहसी, महत्वाकांक्षी, विद्वान, विनोदी परन्तु क्षणिक रुष्ट, तर्कप्रिय, अधीर, चिड़चिड़ा।
तुला राशि, चित्रा नक्षत्र का स्वभाव:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का महत्वाकांक्षी, उच्च विचार, साहसी, दूरदृष्टि, सूझबूझ, आदर्श स्वभाव, विज्ञान प्रेमी, उत्तम रुचियां, अन्तःज्ञान युक्त ।
कन्या राशि चित्रा नक्षत्र व्यवसाय:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक प्रकाशन, लेखन मुद्रण, भवन ठेकेदार, दलाल, यातायात पुलिस, रक्षा, सेना, बिक्रीकर, आयकर, राजस्व, वित्त विभाग, उद्योग, विद्युत, खान, मैकेनिक, इन्जीनियर, जेल विभाग, चिकित्सा, अपराध विशेषज्ञ, फिंगर प्रिन्ट विशेषज्ञ, लेखाकार, चित्रकार, बुनकर, इत्र विक्रेता
तुला राशि, चित्रा नक्षत्र व्यवसाय:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक वकील, शल्य चिकित्सक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, धर्मप्रधान, व्यापार, सेना - रक्षा विभाग, उद्योग, व्यापारिक साझेदारी, ठेकेदार, मुद्रणालय, कलात्मक विज्ञापन, सजावट विशेषज्ञ, इत्र, तेल, पाउडर के निर्माता व व्यापारी, वैवाहिक दलाल, खेलकूद, संगीत के वाद्य यंत्रों के निर्माता व व्यापारी, सूक्ष्मदर्शी, रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकार्ड, दूरदर्शी आदि का व्यापारी, दर्जी, लेडी डॉक्टर, शल्य चिकित्सक, सिगरेट, सूंघनी, तेल-पेट्रोल के विक्रेता ।
इस चित्रा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
कन्या राशि चित्रा नक्षत्र रोग:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें – पेट में घाव, तीव्र दर्द, कीड़े, पेट में खुजली, टांगों में दर्द, कीड़ों, सर्पों व जंगली जानवरों द्वारा काटने के घाव, हैजा, मूत्रविकार, पथरी ।
तुला राशि, चित्रा नक्षत्र रोग:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गुरदे (किडनी) व ब्लेडर में सूजन, बहुमूत्र रोग, पथरी, सिरदर्द, मस्तिष्क ज्वर, कमर दर्द, लू
कन्या राशि चित्रा नक्षत्र राशीश बुध
तुला राशि चित्रा नक्षत्र राशीश शुक्र
• नक्षत्र अंग – उदर, गर्भाशय, कोख – यकृत, हर्निया, एपेन्डिक्स ।
• नक्षत्र वृक्ष बेल है ।
• नक्षत्र रंग- लाल
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र गणना - उग्र
• नक्षत्र स्वामी - मंगल
• नक्षत्र के देवता - त्वष्टा
• नक्षत्र मंत्र - ॐ चित्रायै नमः
चित्रा कन्या राशि
• वर्ण: वैश्य
• वशय: मानव
• योनि : व्याघ्र
• गण: राक्षस
• नाड़ी: मध्य
चित्रा तुला राशि
• वर्ण: सूद्र
• वशय: मानव
• योनि : व्याघ्र
• गण: राक्षस
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
चित्रा नक्षत्र प्रथम व द्वितीय चरण - कन्या राशि, - तृतीय व चतुर्थ चरण तुला राशि,में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : रवि
विष्णु उपासना
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
एकादशी व्रत
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
शिव उपासना
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र का जप
Special Tips:
चित्रा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को मृगशिरा - चित्रा धनिष्ठा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
स्वाति नक्षत्र

स्वाति नक्षत्र
स्वाति नक्षत्र जून महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 1 ही तारा है इसका आकाश में तोरण जैसा स्वरूप दिखाई देता है तुला राशि - 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक होता है
स्वाति नक्षत्र का स्वभाव:
स्वाति नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का ईमानदार, विनम्र, न्यायप्रिय, बुद्धिमान, अन्तःज्ञानयुक्त, मधुर व्यवहार युक्त, सहानुभूतिप्रद, व्यापारिक चतुराई, मधु-भाषी, समायोजनप्रिय ।
स्वाति नक्षत्र व्यवसाय:
स्वाति नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक विद्युत उपकरण, ट्यूबलाइट, पंखे, हीटर, कूलर, एक्सरे आदि का निर्माता, ऑटोमोबाइल, यातायात, पर्यटन, संगीत, नाटक, थियेटर, कला, चित्रकारी, सजावट, प्रदर्शनी, वैज्ञानिक, न्यायाधीश, कवि, उद्घोषक, नृतक, फेंसी व हार्डवेयर सामान निर्माता, हलवाई, बेकरी, दूध डेयरी, चमड़े का सामान, रसोइया, नौकरानी, कशीदाकारी, फोटोग्राफी, रेडीमेड गारमेन्ट्स, इत्र, सेन्ट, प्लास्टिक व कांच का निर्माता व व्यापारी ।
इस स्वाति नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
स्वाति नक्षत्र रोग:
स्वाति नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें चमड़ी (चर्म) गुरदे, मूत्रनली, मूत्राशय, हार्निया, एपेन्डिक्स (ii) रोग – मूत्ररोग, मूत्रनली में छाले या मवाद, चर्म रोग, कोढ़, श्वेत दाग, बहुमूत्र रोग, गुरदों के रोग ।
राशीश शुक्र
• नक्षत्र अंग – चमड़ी (चर्म) गुरदे, मूत्रनली, मूत्राशय, हार्निया, एपेन्डिक्स
• नक्षत्र वृक्ष - अर्जुन है ।
• नक्षत्र रंग - ब्राउन
• नक्षत्र तत्व - अग्नि
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी राहू ।
• नक्षत्र के देवता -वायु
• नक्षत्र मंत्र - ॐ स्वत्यै नमः
• वर्ण : सूद्र
• वशय : मानव
• योनि : महिस
• गण : देव
• नाड़ी : अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
स्वाति नक्षत्र के 4 तुला राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
विष्णु मंत्र के जप और उपासना
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
तुलसी पूजा दिप दान और गायत्री मंत्र जप
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
गायत्री मंत्र जप और हवन
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
शालिग्राम की पूजा
Special Tips:
स्वाति नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को आर्द्रा स्वाति – शतभिषा इन तीन नक्षत्र ने कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
विशाखा नक्षत्र

विशाखा नक्षत्र
विशाखा नक्षत्र जुलाई महीने के पहले पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 4 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में प्रवाल जैसा दिखाई देता है तुला राशि विशाखा नक्षत्र –प्रथम द्वितीय व तृतीय चरण–तुला राशि 20 अंश से 30 अंश तक होता है वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र - चतुर्थ चरण- वृश्चिक राशि 0 अंश से 3 अंश 20 कला तक होता है
तुला राशि विशाखा नक्षत्र का स्वभाव:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का आकर्षक व्यक्तित्व, मधुर व्यवहार, विनम्र, ईश्वर भक्त, दयालु, उदार, सत्यमार्गी, न्यायप्रिय, बुद्धिमान, सभ्य एवं सुसंस्कृत।
वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र का स्वभाव:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक प्रभावशाली, उत्साही, सम्मानित, कुलीन, ईमानदार, हितैषी, निष्कपट, स्वच्छन्द, दयालु, अतिउदार, स्पष्टवक्ता, अतिव्ययी, तर्कप्रिय
तुला राशि विशाखा नक्षत्र व्यवसाय:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक – यात्रा दलाल, पर्यटन विभाग, विदेशियों से सम्पर्क द्वारा लाभ, जल एवं वायु यात्रा, धावक, भवन ठेकेदार, विदेशी व्यापार, फल, बागान, साझेदारी, कर एवं राजस्व विभाग, चलचित्र, विज्ञापन, अभिनय, खान, रत्न, इत्र, प्रकाशक,सम्पादक, समालोचक, वैद्य, न्यायाधीश, आडीटर, व्याख्याता, प्राचार्य ।
वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र व्यवसाय:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक बीमा, बैंक व्यवसाय, न्यायाधीश, अपराध विशेषज्ञ, रसायन एवं दवा निर्माण एवं विक्रय, भूमि भवन व कृषि भूमि से सम्बन्धित व्यवसाय, उद्योग, बन्दरगाह
इस विशाखा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
तुला राशि विशाखा नक्षत्र रोग:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें डायविटीज, बेहोशी, गुरदे के रोग, गुरदे में मवाद, इन्सुलिन की कमी,चक्कर आना।
वृश्चिक राशि विशाखा नक्षत्र रोग:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गर्भाशय के रोग, प्रोस्टेट वृद्धि, मूत्ररोग, अधिक रक्तस्त्राव, गुरदे में पथरी, घाव व मवाद, नकसीर, जलोदर
तुला राशि विशाखा राशीश शुक्र
वृश्चिक राशि विशाखा राशीश मंगल
• नक्षत्र अंग – मूत्राशय, मूत्रनली, गर्भाशय एवं अन्य प्रजननांग, मलाशय, पौरुष ग्रन्थि ( प्रोस्टेट ग्लेण्ड ) -पेट का निचला भाग, गुरदे, अग्नाशयी ग्रन्थियां
• नक्षत्र वृक्ष नीम है ।
• नक्षत्र रंग - यलो
• नक्षत्र तत्व - वायु
• नक्षत्र गणना - अशुभ
• नक्षत्र स्वामी - गुरु
• नक्षत्र के देवता - इन्द्राग्नि
• नक्षत्र मंत्र - ॐ विशाखाभ्यां नमः
विशाखा वृश्चिक राशि
•वर्ण : विप्र
•वशय : किट
•योनि : व्याघ्र
•गण : राक्षस
•नाड़ी : अंत्य
विशाखा तुला राशि
•वर्ण : सूद्र
•वशय : मानव
•योनि : व्याघ्र
•गण : राक्षस
•नाड़ी : अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
विशाखा नक्षत्र प्रथम द्वितीय व तृतीय चरण–तुला राशि चतुर्थ चरण- वृश्चिक राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी मंगल:
हर महीने की शिवरात्रि का उपवास
द्वितीय चरण का स्वामी शुक्:
गायत्री मंत्र और जातवेदसे मंत्र का जप
तृतीय चरण का स्वामी बुध :
सूर्य मंत्र का जप , तिल , तूप , मध् , चावल का हवन
चौथे चरण का स्वामी चंद्रमा :
रविवार कप सूर्य पूजा एवं सूर्य उपासना
Special Tips:
विशाखा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुनर्वसु विशाखा – पूर्वाभाद्रपद इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
अनुराधा नक्षत्र

अनुराधा नक्षत्र
अनुराधा नक्षत्र जुलाई महीने की शुरुवात में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 4 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में बलि जैसा दिखाई देता है वृश्चिक राशि अनुराधा नक्षत्र - 3 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला तक होता है
अनुराधा नक्षत्र का स्वभाव:
अनुराधा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का उत्साही प्रभावशाली, आत्मविश्वासी, शक्तिशाली, स्वार्थी, कठोर हृदयी, निर्दयी, असत्यवादी, बेईमान, अतिभोजी
अनुराधा नक्षत्र व्यवसाय:
अनुराधा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक उत्खनन इन्जीनियर, कोयला तेल पेट्रोल, कच्ची धातुएं, दवा निर्माता, शल्य चिकित्सक तथा होम्योपैथ, अपराध विशेषज्ञ, वाद्य यंत्र, चमड़े, हड्डियां व ऊनी वस्त्रों के व्यापारी, दंत विशेषज्ञ, जलक्षय विभाग, खाद्य तेल निर्माता एवं विक्रेता, रात्रि चौकीदार, न्यायाधीश, जेल सेवा, अभिनेता, गुप्त विधाओं से आय या रक्षा विभाग में नौकरी, आयुर्वेदिक दवाइयां, दलाल
इस अनुराधा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
अनुराधा नक्षत्र रोग:
अनुराधा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें मासिक धर्म में रुकावट एवं रक्तस्त्राव की कमी, दर्द, बन्ध्यत्व, कब्जी, सूखी बवासीर, कूल्हे की हड्डी का फ्रेक्चर, गले में दर्द, कफ, नजला
राशीश मंगल
• नक्षत्र अंग – मूत्राशय, मलाशय, प्रजननांग, गुदा, प्रजननांगों के निकट की अस्थियां है ।
• नक्षत्र वृक्ष मौलसिरी
• नक्षत्र रंग - लाइट ब्लू
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी शनि
• नक्षत्र के देवता - मित्र
• नक्षत्र मंत्र - ॐ अनुराधाभ्यो नमः
• वर्ण: विप्र
• वशय:किट
• योनि :मृग
• गण:देव
• नाड़ी:मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
अनुराधा नक्षत्र के 4 चरण मेष राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : रवि
गायत्री मंत्र का जप और हवन
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
रविवार और सप्तमीका उपवास
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र का जप
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
सोमाववती अमास का उपवास
Special Tips:
अनुराधा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुष्य अनुराधा उत्तराभाद्रपद इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
ज्येष्ठा नक्षत्र

ज्येष्ठा नक्षत्र
ज्येष्ठा नक्षत्र जुलाई महीने के आखरी पक्ष में ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में कुण्डल जैसा दिखाई देता है ज्येष्ठा नक्षत्र -वृश्चिक राशि-16 अंश 40 कला से 30 अंश तक होता है
ज्येष्ठा नक्षत्र का स्वभाव:
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का विद्वान, कुशल, चतुर, हाजिरजवाब, क्रियात्मक, विद्याभिलाषी, स्फूर्तिवान, निडर, साधनयुक्त परन्तु कटुभाषी, झगड़ालू
ज्येष्ठा नक्षत्र व्यवसाय:
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक प्रकाशन मुद्रण, स्याही, टंकण कार्य केलक्यूलेटर व केबिल निर्माता, विज्ञापन, सूती वस्त्र उद्योग, पम्पसेट, बॉयलर विक्रेता, रासायनिक इन्जीनियर,बांध, नहर खुदाई, बीमा, चिकित्सा, सेना, नौ सेना, न्यायाधीश, डाक-तार, जेल विभाग।
इस ज्येष्ठा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
ज्येष्ठा नक्षत्र रोग:
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें श्वेत प्रदर, खूनी बवासीर, रतिरोग, प्रजननांग सम्बन्धी रोग, भुजाओं व कन्धों में दर्द, ट्यूमर
राशीश मंगल
• नक्षत्र अंग – अंडाशय, गर्भाशय, बड़ी आंत, प्रजननांग, मलद्वार
• नक्षत्र वृक्ष रीठा है ।
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र रंग - हरा
• नक्षत्र गणना - तीक्ष्ण
• नक्षत्र स्वामी - बुध
• नक्षत्र के देवता - इंद्रा
• नक्षत्र मंत्र - ॐ ज्येष्ठायै नमः
• वर्ण: विप्र
• वशय: किट
• योनि : मृग
• गण:राक्षस
• नाड़ी:आदि
नक्षत्र साधना उपासना
ज्येष्ठा नक्षत्र के 4 चरण वृश्चिक राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप और भूमि दान
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
एकादसी व्रत
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
पूर्णिमा व्रत उपवास
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
सूर्य गायत्री मंत्र के जप
Special Tips:
ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को आश्लेषा ज्येष्ठा - रेवती इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
मूल नक्षत्र

मूल नक्षत्र
मूल नक्षत्र ऑगस्ट महीने के पहले पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 11 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप सिंह की पुंछ जैसा दिखाई देता है धनु राशि मूल नक्षत्र 0 अंश से 13 अंश 20 कला होता है
मूल नक्षत्र का स्वभाव:
मूल नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का दयालु, उदार, सम्मानित, क्षमाशील, दानी, आशावादी, न्यायप्रिय, स्नेहिल, धनी, प्रसन्नचित्त, परोपकारी, प्रफुल्लित, धर्मपरायण, सामाजिक कार्यकर्ता, श्रद्धा का पात्र, अंधविश्वासी।
मूल नक्षत्र व्यवसाय:
मूल नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक व्यवसाय–वेदज्ञ, ज्योतिषी, पुरोहित, मौलवी, पादरी, कथावाचक, शिक्षक, राजदूत, सचिव, दुभाषिया, चिकित्सक, वैद्य, जड़ी-बूटी व औषधि विक्रेता, सलाहकार, सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, न्यायाधीश, सलाहकार, राजनेता, सम्पादक, ग्राम मुखिया।
इस मूला नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
मूल नक्षत्र रोग:
मूल नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें कटिवात, गठिया, कमर दर्द, श्वास रोग, न्यून रक्तचाप, मतिभ्रम ।
राशीश गुरु
• नक्षत्र अंग – कूल्हे, जांघें, उरु अस्थियां, नितम्ब अस्थियां, साइटिक तंत्र
• नक्षत्र वृक्ष राल का पेड़ है।
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र रंग - लाइट ब्लैक
• नक्षत्र गणना - तीक्षण
• नक्षत्र स्वामी - केतू
• नक्षत्र के देवता - निऋति
• नक्षत्र मंत्र - ॐ मुलाय नमः
• वर्ण: क्षत्रिय
• वशय: मानव
• योनि : श्वान
• गण: राक्षस
• नाड़ी:आदि
नक्षत्र साधना उपासना
मूल नक्षत्र के 4 चरण धनु राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र और महामंत्रुजय मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : शुक्र
शिव उपासना और शिव मंत्र के जप
तृतीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र और गौ-दान
चौथे चरण का स्वामी : चंद्र
महालक्मी मंत्र और गौ-दान
Special Tips:
मूल नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को अश्विनी - मघा - मूल इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र

पूर्वाषाढ़ नक्षत्र
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र सप्तम्बर महीने के दूसरे पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 4 तारो से बना हुआ है इसका आकाश में स्वरुप सैया जैसा दिखाई देता है धनु राशि पूर्वाषाढ़ नक्षत्र –13 अंश 20 कला से 26 अंश 40 कला तक होता है
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र का स्वभाव:
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का ईमानदार, विनम्र, मधुर व्यवहार, दयालु, न्यायप्रिय, आशावादी, सहनशील, क्षमाशील, कोमल हृदय, ललित कला व नाट्यकला में रुचि, उच्च स्तरीय जीवन
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र व्यवसाय:
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक वकील, न्यायाधीश, बैंक, कैशियर, निदेशक, राजस्व व वित्त विभाग, पशुपालन, समाज कल्याण विभाग, रेलवे, सड़क, वायु यातायात, रेशम, सूत रबर व शक्कर व्यवसाय, समाज कल्याण विभाग, बाग, नर्सरी, संगीत, चलचित्र, रेस्तरां, होटल व्यवसाय, स्वास्थ्य केन्द्र, आयुर्वेदिक दवाइयां, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार
इस पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र रोग:
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें रोग- गठिया, कटिवात, साइटिका, मधुमेह (डाइबिटीज), प्रमेह, अफारा, फेफड़ों में कैन्सर, श्वास रोग, घुटनों में सूजन, शीत प्रकोप, रक्त प्रदूषण, धातुक्षय ।
राशीश गुरु
• नक्षत्र अंग – जांघें, कूल्हे
• नक्षत्र वृक्ष मौलसिरी/जामुन है ।
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र रंग - सफ़ेद
• नक्षत्र गणना - उग्र
• नक्षत्र स्वामी - शुक्र
• नक्षत्र के देवता - उदक
• नक्षत्र मंत्र - ॐ पूर्वाषाढ़भ्यां नमः
• वर्ण: क्षत्रिय
• वशय:वशय:चतुश्पद
• योनि : वानर
• गण: मनुष्य
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र के 4 चरण धनु राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : रवि
जल दान , भानुसप्तमी का व्रत
द्वितीय चरण का स्वामी: बुध
गौ-दान महालक्ष्मी मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
दुर्गा सप्तशती व्रत और शिव पूजा
Special Tips:
पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को भरणी - पूर्वाफाल्गुनी पूर्वाषाढ़ा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
उत्तराषाढ़ नक्षत्र

उत्तराषाढ़ नक्षत्र
उत्तराषाढ़ नक्षत्र सप्तम्बर महीने के पहले पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 4 -4 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में हाथी जैसा दिखाई देता है धनु राशि उत्तराषाढ नक्षत्र –प्रथम चरण- धनु राशि 26 अंश 40 कला से 30 अंश तक होता है मकर राशि उत्तराषाढ नक्षत्र –द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण–मकर राशि 0 अंश से 10 अंश तक होता है
धनु राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र का स्वभाव:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का परोपकारी, कृतज्ञ । विद्वान, विनोदी, उच्च आदर्शवादी, प्रसन्नचित्त, आशावादी
मकर राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र का स्वभाव:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का - तीक्ष्ण बुद्धि, दूर दृष्टि, विनम्र, उदार, कुशल वक्ता, कृतज्ञ, सत्यमार्गी एवं सत्यभाषी, विश्वसनीय, गणितज्ञ, मितव्ययी ।
धनु राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र व्यवसाय:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक शिक्षा, धर्म, न्यायाधीश, बैंक, वित्त, राजनयिक, राजदूतावास, अस्पताल, जेल व कस्टम विभाग, जलयान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, आयुर्वेदिक दवाइयां, सैनिक, पहलवान, घुड़सवार, महावत ।
मकर राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र व्यवसाय:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक भूमिगत व्यवसाय, खान, कोयला, वित्त विभाग, वैज्ञानिक, आयकर विभाग, अनुसंधान, जेल एवं नियंत्रण (कन्ट्रोल) विभाग, इन्जीनियर, ऊन, चमड़ा, खालें व हड्डियां, होम्योपैथी, पुरातत्व विभाग, दुर्लभ वस्तुएं, प्राचीन भाषाएं, दुभाषिया ।
इस उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
धनु राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र रोग:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें साइटिका, गठिया, कमर दर्द, पक्षाघात, उदर दर्द, चर्म रोग, नेत्र रोग, श्वसन सम्बन्धी रोग
मकर राशि उत्तराषाढ़ नक्षत्र रोग:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गैस से सम्बन्धित रोग, गज चर्म (एक्जीमा), चर्म रोग, कोढ़, श्वेत कुष्ठ, गठिया, हृदय रोग, धड़कन, पाचन असंतुलन।
धनु राशि उत्तराषाढ़ राशीश गुरु
मकर राशि उत्तराषाढ़ राशीश शनि
• नक्षत्र अंग – जांघें, अस्थि, धमनी । चर्म, घुटना, पटेला (घुटने का ढक्कन)
• नक्षत्र वृक्ष कटहल है ।
• नक्षत्र रंग - लाल
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र गणना - स्थिर
• नक्षत्र स्वामी - शुक्र
• नक्षत्र के देवता - विश्वेदेव
• नक्षत्र मंत्र - ॐ उत्तराषाढ़भ्यां नमः
• वर्ण : वैश्य
• वशय : चतुश्पद
• योनि : नकुल
• गण : मनुष्य
• नाड़ी : अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
उत्तराषाढ़ नक्षत्र – प्रथम चरण- धनु राशि द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण–मकर राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र और हवन
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
गणेश पूजन
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
गायत्री मंत्र जप और हवन
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप और हवन
Special Tips:
उत्तराषाढ़ नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को कृत्तिका - उत्तराफाल्गुनी - उत्तराषाढ़ा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
श्रवण नक्षत्र

श्रवण नक्षत्र
श्रवण नक्षत्र सप्तम्बर महीने के पहले ठीक शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 3 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में आयातकार जैसा दिखाई देता है मकर राशि श्रवण नक्षत्र 10 अंश से 23 अंश 20 कला तक होता है
श्रवण
श्रवण नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सचेत, कार्यकुशल, सच्चा, वफादार, आशावादी, धैर्यवान, धनी, प्रसिद्ध चंचल, साहस की कमी।
श्रवण नक्षत्र व्यवसाय:
श्रवण नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक आइसक्रीम, फ्रिज, कूलर, वाहन चालक, रात्रि में भूमिगत कार्य, • खान एवं खान उत्पाद, तेल, केरोसीन, पेट्रोल, पेट्रोल पम्प, कोयला, नम भूमि, कुए, तालाब, नहरें, सुरंग खोदना, सिंचाई विभाग, मछुवारा, मोती, कृषक, मंत्री, नर्स, दाई,चमड़ा, मदारी, जादूगर
श्रवण नक्षत्र रोग:
श्रवण नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गज चर्म, चर्म रोग, कोढ़, फोड़े, गठिया, क्षयरोग, प्लुरिसी, अतिसार, संग्रहणी, अपच, फाइलेरिया ।
राशीश शनि
• नक्षत्र अंग – घुटने, चर्म
• नक्षत्र वृक्ष आक है ।
• नक्षत्र रंग - सफ़ेद
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र गणना - चर
• नक्षत्र स्वामी -चन्द्र
• नक्षत्र के देवता - विष्णु
• नक्षत्र मंत्र - ॐ श्रवणाय नमः
• वर्ण : वैश्य
• वशय : जलचर
• योनि : वानर
• गण : देव
• नाड़ी : अंत्य
नक्षत्र साधना उपासना
श्रवण नक्षत्र के 4 चरण मेष राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप और गौ-दान
द्वितीय चरण का स्वामी: शनि
गायत्री मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
ॐ नमः शिवाय मंत्र जप
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
विष्णु मंत्र जप
Special Tips:
श्रवण नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को रोहिणी - हस्त - श्रवण इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
धनिष्ठा नक्षत्र

धनिष्ठा नक्षत्र
धनिष्ठा नक्षत्र अक्टुम्बर महीने के पहले पक्ष में आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 5 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में चक्र जैसा दिखाई देता है मकर राशि धनिष्ठा नक्षत्र प्रथम व द्वितीय चरण मकर राशि 23 अंश 20 कला 30 अंश तक होता है कुम्भ राशि धनिष्ठा नक्षत्र तृतीय व चतुर्थ चरण– कुम्भ राशि 0 अंश से 6 कला 40 अंश तक होता है
मकर राशि धनिष्ठा नक्षत्र का स्वभाव:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का दानी, धनी, सचेत, सक्रिय, साहसी, प्रभावशाली, महत्वाकांक्षी, दृढ़प्रतिज्ञ परन्तु लालची, स्वार्थी प्रतिशोधात्मक, आक्रामक, नपुंसक।
कुम्भ राशि धनिष्ठा नक्षत्र का स्वभाव:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का धनी, दानी, धर्मावलम्बी, समाजप्रिय, हाजिर जवाब, वैज्ञानिक एवं अनुसन्धानात्मक प्रवृत्ति, परन्तु लोभी, क्रोधी, लड़ाकू
इस धनिष्ठा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
मकर राशि धनिष्ठा नक्षत्र व्यवसाय:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक आयुर्वेद, होम्योपैथी, अस्थि विशेषज्ञ, खान व भूमिगत कार्यों का इन्जीनियर, श्रम, पुनर्वास विभाग, मृत्युकर संग्रह, जेल विभाग, उद्योग, उपकरण, स्पेयर पार्ट्स, जस्ता, सीमेन्ट, धातु सीसा, शराब, जूट आदि से सम्बन्धित व्यवसाय, बूचड़खाना।
कुम्भ राशि धनिष्ठा नक्षत्र व्यवसाय:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक – दूरदर्शन, दूरभाष, तार, विद्युत, अणुशक्ति, अनुसंधान केन्द्र, संदेशवाहन, न, मुद्रणालय, अन्वेषक, कृषि, चाय, रेशम, जूट, खान कोयला, लौह स्टील, चमड़ा खाल, पुलिस मिलिटरी, पोस्टमार्टम, भूचाल, दंगों व युद्ध के पीड़ितों को सहयोग ।
मकर राशि धनिष्ठा नक्षत्र रोग:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें पैरों में चोट, लंगड़ा, टांगों का काटा जाना, फोड़े, हिचकी, मितली, (पटेला) घुटने की हड्डियां, पैर सूखी खांसी
कुम्भ राशि धनिष्ठा नक्षत्र रोग:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें टांग में फ्रेक्चर, रक्त विचार, रक्तोष्णता, धड़कन, मूर्च्छा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, स्नायुगुच्छ ( वेरीकोज) रोग ।
धनिष्ठा नक्षत्र मकर राशीश शनि
धनिष्ठा नक्षत्र कुम्भ राशीश शनि
• नक्षत्र अंग – घुटने का ढक्कन– टखने, पिंडली, भुजाएं
• नक्षत्र वृक्ष शमी और सेमर है ।
• नक्षत्र रंग - लाल
• नक्षत्र तत्व - पृथ्वी
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी - मंगल
• नक्षत्र के देवता - वशु
• नक्षत्र मंत्र - ॐ धनिष्ठायै नमः
धनिष्ठा मकर राशि
• वर्ण: वैश्य
• वशय: जलचर
• योनि : सिंह
• गण:राक्षस
• नाड़ी:मध्य
धनिष्ठा कुम्भ राशि
• वर्ण :सूद्र
• वशय: मानव
• योनि : सिंह
• गण:राक्षस
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
धनिष्ठा नक्षत्र के प्रथम व द्वितीय चरण मकर राशि तृतीय व चतुर्थ चरण– कुम्भ राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : रवि
गायत्री मंत्र जप और महामृतुन्जय मंत्र जप
द्वितीय चरण का स्वामी : बुध
गायत्री मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी : शुक्र
गायत्री मंत्र जप
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
सूर्य मंत्र एवं उपासना
Special Tips:
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को मृगशिरा - चित्रा धनिष्ठा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
शतभिषा नक्षत्र

शतभिषा नक्षत्र
शतभिषा नक्षत्र अक्टुम्बर महीने के दूसरे पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 100 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में मृग जैसा दिखाई देता है कुम्भ राशि शतभिषा नक्षत्र – 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक होता है
शतभिषा नक्षत्र का स्वभाव:
शतभिषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सत्यमार्गी, हितैषी, प्रभावशाली, धैर्यवान, स्वतंत्र, अलगावप्रिय।
शतभिषा नक्षत्र व्यवसाय:
शतभिषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक ज्योतिष, खगोलशास्त्र, विज्ञान, भौतिकी, विद्युत, अणुविद्युत, वायु यातायात, तकनीशियन, प्रयोगशाला, चर्म उद्योग, जनगणना, राशन एवं जेल विभाग, दुभाषिया, अनुवादक, गुप्त विद्या
इस शतभिषा नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
शतभिषा नक्षत्र रोग:
शतभिषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें टांग में फ्रेक्चर, लंगड़ाना, टांग काटा जाना, गठिया, हृदय रोग, गज चर्म, कोढ़ उच्च रक्तचाप
राशीश शनि
• नक्षत्र अंग – – पिंडली व पिंडली की मांसपेशियां।
• नक्षत्र वृक्ष कदम्ब है ।
• नक्षत्र रंग - लाइट ब्लैक
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र गणना - चर
• नक्षत्र स्वामी राहू
• नक्षत्र के देवता - वरुण
• नक्षत्र मंत्र - ॐ शतभिषजे नमः
• वर्ण :सूद्र
• वशय: मानव
• योनि : अश्व
• गण:राक्षस
• नाड़ी: आदि
नक्षत्र साधना उपासना
शतभिषा नक्षत्र के 4 चरण कुम्भ राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
सूर्य मंत्र जप और हवन
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
गायत्री मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
विष्णु मंत्र हवन एवं ब्राम्हण भोजन
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
दुर्गा सप्तसती मंत्र शिव पूजा सूर्य मंत्य्रा जप और हवन
Special Tips:
शतभिषा नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को आर्द्रा स्वाति – शतभिषा इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र

पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र नवम्बर महीने के पहले पहले पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 2 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में वर्तुल जैसा दिखाई देता है कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद – प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरण - कुम्भ राशि 20 अंश से 30 अंश तक होता है मीन राशि, पूर्वा भाद्रपद – चतुर्थ चरण– मीन राशि, 0 अंश से 3 अंश 20 कला तक होता है
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र का स्वभाव:
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सच्चा, सत्यमार्गी एवं सत्यभाषी, ईमानदार, दार्शनिक, विश्वसनीय, निस्वार्थ, व्यवस्थाप्रिय, आशावादी परन्तु आलसी।
मीन राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र का स्वभाव:
मीन राशि, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का साहित्य, संगीत व कला में रुचि, नियमपालक
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र व्यवसाय:
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक खगोलशास्त्र, गणित, ज्योतिष आदि का शिक्षण, स्थानीय निकाय, नगरपालिका, पंचायत निगम आदि, शेयर दलाल, अनुसंधानकर्ता, विदेशी विनिमय, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, वित्त, राजस्व, टकसाल, सी० आई० डी० विभाग, उत्खनन, वायुयान, बीमा मन्दिर व दवाइयों आदि से सम्बन्धित व्यवसाय |
मीन राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र व्यवसाय:
मीन राशि, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक शिक्षा प्राध्यापक, राजनयिक, मंत्री, सलाहकार, कानूनी शिक्षण, न्यायाधीश, अपराध विशेषज्ञ, वित्त विभाग, जेल, अस्पताल, अकाल राहत, आयोजन विभाग, पर्यटन, चिकित्सा, बैंक व विदेशी विनिमय से सम्बन्धित व्यवसाय |
इस पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र रोग:
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें – न्यून रक्तचाप, टखनों में सूजन, दिल का आकार बढ़ जाना,जलशोथ।
मीन राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र रोग:
मीन राशि, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें पैरों में सूजन, पैरों में गांठें, लीवर वृद्धि, आन्त्ररोग, हर्निया, पीलिया,
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद राशीश शनि,
मीन राशि, पूर्वा भाद्रपद राशीश गुरु
• नक्षत्र अंग – - पैर, अंगूठा । टखने
• नक्षत्र वृक्ष आम है ।
• नक्षत्र तत्व - अग्नि
• नक्षत्र रंग - यलो
• नक्षत्र गणना - उग्र
• नक्षत्र स्वामी - गुरु ।
• नक्षत्र के देवता - अजैकचरण
• नक्षत्र मंत्र - ॐ पूर्वप्रोष्ठपद्भ्यां नमः
पूर्वा भाद्रा कुम्भ राशि
• वर्ण :सूद्र
• वशय: मानव
• योनि : सिंह
• गण:मनुष्य
• नाड़ी: आदि
पूर्वा भाद्रा मीन राशि
• वर्ण :विप्र
• वशय:जलचर
• योनि : सिंह
• गण: मनुष्य
• नाड़ी:आदि
नक्षत्र साधना उपासना
कुम्भ राशि पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरण - कुम्भ राशि चतुर्थ चरण– मीन राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी: मंगल
मृत्युंज्जय मंत्र का जप और हवन , रविवार का उपवास
द्वितीय चरण का स्वामी: शुक्र
गायत्री मंत्र जप , मृत्युंज्जय मंत्र जप और हवन
तृतीय चरण का स्वामी: बुध
गणेश मंत्र जप और हवन
चौथे चरण का स्वामी : चंद्र
विष्णु मंत्र जप
Special Tips:
पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुनर्वसु विशाखा – पूर्वाभाद्रपद - इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र

उत्तरा भाद्रपद
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र नवम्बर महीने में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 2 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में यमल जैसा दिखाई देता है उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मीन राशि, 3 अंश 20 कला से 16 अंश 40 कला तक होता है
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का स्वभाव:
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का सच्चरित्र, उदार, परोपकारी, अपाहिजों की सेवा करने वाला,स्वतंत्र
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र व्यवसाय:
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक – उत्खनन, नहर, खाई तालाब की खुदाई, गृह विभाग, पागलखाना, सेनीटोरियम, सेना, अस्पताल, धर्मादा संस्थान, सोसाइटी, क्लब आदि में नौकरी, बीमा, आयात निर्यात, बन्दरगाह पर नौकरी, छतरी, रेनकोट एवं नाव से सम्बन्धित सामान का व्यापार, तेल, मत्स्य पालन, नौकायन, सैनिक या राजनयिक के रूप में कैदी ।
इस उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र रोग:
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें गठिया, पैर में फ्रेक्चर, अपच, कब्ज, हर्निया, जलोदर, क्षयरोग, उदरवात ।
राशीश :- गुरु
• नक्षत्र अंग – पैर
• नक्षत्र वृक्ष पीपल और सोनपाठा है।
• नक्षत्र रंग - डार्क ब्लू
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी - शनि
• नक्षत्र के देवता - अहिर्बुधन्य
• नक्षत्र मंत्र - ॐ उत्तराप्रोष्ठपद्भ्यां नमः
• वर्ण : विप्र
• वशय: जलचर
• योनि : गौ
• गण: मनुष्य
• नाड़ी: मध्य
नक्षत्र साधना उपासना
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के 4 चरण मीन राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : सूर्य
शिव पूजा एवं हवन
द्वितीय चरण का स्वामी: बुध
गायत्री मंत्र जप और जल दान
तृतीय चरण का स्वामी :शुक्र
ॐ नमः शिवाय मंत्र के जप
चौथे चरण का स्वामी : मंगल
गायत्री मंत्र जप और प्रयाग स्न्नान
Special Tips:
उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को पुष्य अनुराधा उत्तराभाद्रपद इन तीन नक्षत्र ने कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए
रेवती नक्षत्र

रेवती नक्षत्र
रेवती नक्षत्र दिसम्बर महीने के पहले पक्ष में शिर पर आकाश में रात 9:00 से 11:00 बजे दिखाई देता है यह नक्षत्र 32 तारो से बना हुआ है इसका स्वरुप आकाश में पर्यासम जैसा दिखाई देता है मीन राशि रेवती नक्षत्र - 16 अंश 40 कला से 30 अंश तक, होता है
रेवती नक्षत्र का स्वभाव:
रेवती नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक का - धर्मपरायण, ईमानदार, परिश्रमी, परोपकारी, सम्मानित परन्तु अस्थिर मस्तिष्क ।
रेवती नक्षत्र व्यवसाय:
रेवती नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक – संदेशवाहन, रेडियो, टेपरिकार्ड का रख-रखाव व व्यापार, प्रकाशन, सम्पादन, धार्मिक व कानूनी साहित्य, विज्ञापन, शिक्षण, न्यायाधीश, राजनयिक, राजदूत, लेखाकार, ऑडीटर, ज्योतिषी, गणितज्ञ, दलाल, बैंक कर्मचारी, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, टकसाल, वकील, फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ ।
इस रेवती नक्षत्र की जानकारी वीडियो के रूप में देखें
रेवती नक्षत्र रोग:
रेवती नक्षत्र में जन्म धारण करने वाला जातक के जीवनमें पैरों में ऐंठन व दर्द, पैरों की विकृति, आंतों में छाले, बहरापन, कानों में मवाद, गुरदे में सूजन, थक्का ।
राशीश गुरु
• नक्षत्र अंग – पैर व पंजा
• नक्षत्र वृक्ष महुआ है ।
• नक्षत्र रंग - हरा
• नक्षत्र तत्व - जल
• नक्षत्र गणना - शुभ
• नक्षत्र स्वामी बुध
• नक्षत्र के देवता - पूषा
• नक्षत्र मंत्र - ॐ रेवत्यै नमः
• वर्ण: विप्र
• वशय : जलचर
• योनि : गज
• गण : देव
• नाड़ी : अन्त्य
नक्षत्र साधना उपासना
रेवती—नक्षत्र के 4 चरण —मीन राशि में आते है इस चरण के अनुशार साधना उपासना करने से अच्छा लाभ प्राप्त होता है
प्रथम चरण का स्वामी : गुरु
ॐ नमः शिवाय मंत्र के जप और पूजा
द्वितीय चरण का स्वामी : शनि
नित्य मृत्यंजय मंत्र आहुति
तृतीय चरण का स्वामी : शनि
नित्य गायत्री मंत्र और मृत्यंजय मंत्र से हवन
चौथे चरण का स्वामी : गुरु
गायत्री मंत्र जप हवन और गौ-दान
Special Tips:
रेवती नक्षत्र में जन्म धारण करने वाले जातक को-आश्लेषा ज्येष्ठा - रेवती इन तीन नक्षत्र में कोई भी अच्छा कार्य नहीं करना चाहिए